वाटरलू का युद्ध, जो 18 जून 1815 को लड़ा गया, यूरोपीय इतिहास के सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण युद्धों में से एक है। इसने नेपोलियन बोनापार्ट की अंतिम हार को चिह्नित किया, जिससे उनकी फ्रांसीसी सम्राट के रूप में सत्ता का अंत हुआ और यूरोप में शांति और स्थिरता के एक नए युग की शुरुआत हुई। यह युद्ध बेल्जियम के छोटे से शहर वाटरलू के पास लड़ा गया था, और इसने लगभग दो दशकों तक चले निरंतर युद्धों का अंत किया, जिनमें फ्रांस और उसके विरोधी विभिन्न गठबंधन शामिल थे।
पृष्ठभूमि: नेपोलियन का उदय और पतन
नेपोलियन का सत्ता में आना अत्यंत तीव्र और प्रभावशाली था। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान एक सफल जनरल के रूप में, उन्होंने 1804 में खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित किया और एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जो यूरोप के अधिकांश हिस्सों पर हावी था। हालांकि, उनकी लगातार सैन्य अभियान कई शत्रुओं को पैदा करते गए, और 1812 में रूस पर आपदा से भरे हमले के बाद उनका साम्राज्य टूटने लगा।
1814 तक, लगातार हार के बाद, नेपोलियन को सिंहासन छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और उन्हें एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया। हालांकि, मार्च 1815 में, वे निर्वासन से भाग निकले और फ्रांस लौटकर सत्ता फिर से हासिल की। इसे “सौ दिनों” के रूप में जाना जाता है। यूरोपीय शक्तियों ने नेपोलियन की वापसी से चिंतित होकर उसे पूरी तरह से हराने के लिए सातवें गठबंधन का गठन किया।
गठबंधन की सेनाएँ
सातवें गठबंधन में ब्रिटेन, प्रशा, ऑस्ट्रिया, रूस और अन्य यूरोपीय राज्य शामिल थे, जो नेपोलियन की वापसी को रोकने के लिए तैयार थे। वाटरलू अभियान के दौरान सबसे महत्वपूर्ण सेनाएँ ब्रिटिश नेतृत्व वाली सेना थी, जिसका नेतृत्व ड्यूक ऑफ वेलिंगटन कर रहे थे, और प्रशियन सेना, जिसका नेतृत्व फील्ड मार्शल गेबहार्ड लेबेरेक्ट वॉन ब्लूचर कर रहे थे।
वेलिंगटन की सेना में ब्रिटिश, डच, बेल्जियम और जर्मन सैनिकों का मिश्रण था, जबकि ब्लूचर की सेना पूरी तरह से प्रशियन थी। दूसरी ओर, नेपोलियन ने भी एक शक्तिशाली सेना जुटाई थी और उन्हें विश्वास था कि वे गठबंधन सेनाओं को पूरी तरह से हराने में सक्षम होंगे।
युद्ध की शुरुआत
वाटरलू में नेपोलियन की रणनीति ‘विभाजित करो और जीत लो’ पर आधारित थी। उनका लक्ष्य वेलिंगटन की सेना को हराना और प्रशियन सेना को समय पर युद्ध में शामिल होने से रोकना था। 18 जून 1815 की सुबह, भारी बारिश के कारण मैदान कीचड़ से भर गया था, जिससे युद्ध क्षेत्र में गति करना कठिन हो गया, और अंतिम टकराव की तैयारी पूरी हो गई।
युद्ध की शुरुआत फ्रांसीसी हमले से हुई, जिसमें वेलिंगटन और उनके सहयोगियों की सेना को वाटरलू के पास एक पहाड़ी पर तैनात किया गया था। हालांकि फ्रांसीसी सेना ने बहुत दबाव डाला, लेकिन वेलिंगटन की सेना ने अपनी मजबूत स्थिति के कारण अपनी रक्षा की। नेपोलियन ने कई बार घुड़सवार सेना को भेजकर वेलिंगटन की पंक्ति को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन हर बार उन्हें कड़ी टक्कर मिली।
प्रशा की भूमिका
वाटरलू की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब प्रशियन सेना युद्ध क्षेत्र में पहुँची। हालांकि शुरुआत में दलदल जैसे क्षेत्र और फ्रांसीसी सेना के प्रतिरोध ने प्रशा को देर से पहुँचने पर मजबूर किया, लेकिन वे दोपहर के बाद युद्ध क्षेत्र में आ गए। उनके आने से गठबंधन सेनाओं की ताकत बढ़ी और फ्रांसीसी सेना पर दबाव बढ़ गया।
नेपोलियन ने प्रशा के हमले को रोकने की कोशिश की, लेकिन उनकी सेना दोनों मोर्चों पर लड़ रही थी—वेलिंगटन की सेना और बढ़ती प्रशियन सेना। गठबंधन सेनाओं का यह दबाव युद्ध का संतुलन बदलने लगा।
इंपीरियल गार्ड का अंतिम प्रयास
युद्ध का पासा पलटने की आखिरी कोशिश में नेपोलियन ने अपनी प्रतिष्ठित इंपीरियल गार्ड को युद्ध में भेजा। यह गार्ड कभी हार नहीं मानती थी, और नेपोलियन को उम्मीद थी कि वे निर्णायक जीत दिला सकेंगे। लेकिन वेलिंगटन की सेना और प्रशियन बलों के संयुक्त हमले ने इंपीरियल गार्ड को भी पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस असफलता के बाद, फ्रांसीसी सेना का मनोबल टूट गया और वे युद्ध क्षेत्र से भागने लगे।
नेपोलियन ने जब देखा कि जीत अब संभव नहीं है, तो वे युद्ध क्षेत्र से भाग गए। उनकी सेना पूरी तरह से बिखर गई, और 18 जून की शाम को वाटरलू का युद्ध समाप्त हो गया।
परिणाम और प्रभाव
वाटरलू में हार ने नेपोलियन का अंत कर दिया। उन्होंने दूसरी बार सिंहासन छोड़ा और उन्हें सुदूर सेंट हेलेना द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के बाकी दिन बिताए। यह युद्ध नेपोलियन युद्धों के अंत का प्रतीक बना और यूरोप में शांति का एक ऐसा युग लाया जो लगभग पचास वर्षों तक चला, जब तक कि 1853 में क्रीमियन युद्ध शुरू नहीं हुआ।
वाटरलू की हार के बाद, यूरोप की भू-राजनीति में बड़े बदलाव हुए। सातवें गठबंधन की विजय प्राप्त शक्तियों ने वियना कांग्रेस में मिलकर यूरोप का नक्शा फिर से खींचा, राजशाहियों को बहाल किया और सत्ता के संतुलन को इस तरह से स्थापित किया कि किसी एक राष्ट्र को महाद्वीप पर नेपोलियन की तरह प्रभुत्व हासिल न हो सके।
विरासत
वाटरलू का युद्ध इतिहास के सबसे अध्ययन किए गए युद्धों में से एक है। यह एक युग के अंत का प्रतीक है—क्रांतिकारी अशांति और नेपोलियन के विस्तार का अंत। इस युद्ध के परिणामस्वरूप यूरोप में रूढ़िवादी शासन का दौर आया। यह युद्ध सैन्य रणनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसमें नेतृत्व, रणनीति और युद्ध में सही समय पर सहयोग का महत्त्व समझ में आता है।
वेलिंगटन और ब्लूचर के बीच सहयोग ने मित्र सेनाओं के महत्व को साबित किया, जबकि नेपोलियन की अतिविश्वास और गलत गणनाएँ इस बात का प्रमाण थीं कि युद्ध में दूरदृष्टि और उचित योजना का अभाव खतरनाक हो सकता है।
निष्कर्ष
वाटरलू का युद्ध केवल नेपोलियन की सैन्य हार नहीं था, यह एक युग का अंत था। इस हार ने यूरोप की राजनीतिक संरचना को बदल दिया और दशकों तक चलने वाले शांति काल का सूत्रपात किया। विजय और पराजय, दोनों पक्षों के लिए, वाटरलू एक मोड़ था, और इसका प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है।
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