भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय विद्युत योजना (प्रेषण) का औपचारिक रूप से शुभारंभ किया गया है, जिसका उद्देश्य देश के विद्युत प्रेषण ढांचे में सुधार करना और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेशन पर ध्यान केंद्रित करना है। इस योजना को केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) द्वारा तैयार किया गया और इसे केंद्रीय मंत्री श्री मनोहर लाल ने 14-15 अक्टूबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय मंथन सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत किया।
2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य
राष्ट्रीय विद्युत योजना के तहत 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के प्रेषण का लक्ष्य रखा गया है, जो 2032 तक बढ़कर 600 गीगावाट हो जाएगा। यह योजना भारत की नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और देश के स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र को मजबूत करने में सहायक होगी।
योजना में ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की आवश्यकता को भी ध्यान में रखा गया है, जिसमें 47 गीगावाट की बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) और 31 गीगावाट की पंपेड स्टोरेज प्लांट्स (PSP) शामिल हैं। ये प्रणालियाँ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाने के साथ-साथ ऊर्जा आपूर्ति में स्थिरता सुनिश्चित करेंगी। इसके अलावा, हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया उत्पादन केंद्रों की मांग को पूरा करने के लिए प्रेषण प्रणाली भी तैयार की गई है, जो मुण्ड्रा, कांडला, गोपालपुर, पारादीप, तूतीकोरिन, विशाखापत्तनम और मंगलौर जैसे तटीय क्षेत्रों में स्थित होंगी।
विस्तृत बुनियादी ढांचे का विस्तार
अगले दशक (2022-23 से 2031-32) के दौरान योजना के तहत 1,91,000 सर्किट किलोमीटर (ckm) प्रेषण लाइन और 1270 GVA ट्रांसफार्मेशन क्षमता (220 केवी और उससे अधिक के वोल्टेज स्तर पर) जोड़े जाने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही, 33 गीगावाट एचवीडीसी (HVDC) बाइ-पोल लिंक का विकास भी किया जाएगा, जिससे पूरे देश में सुदृढ़ और कुशल विद्युत प्रेषण सुनिश्चित हो सकेगा।
अंतर-क्षेत्रीय प्रेषण क्षमता भी मौजूदा 119 गीगावाट से बढ़ाकर 2027 तक 143 गीगावाट और 2032 तक 168 गीगावाट करने की योजना है, जिससे राष्ट्रीय ग्रिड को और अधिक सशक्त बनाया जा सकेगा और विभिन्न क्षेत्रों में विद्युत की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी।
सीमापार कनेक्टिविटी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग
योजना में भारत के पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ सीमापार कनेक्टिविटी की भी रूपरेखा तैयार की गई है। इसके अलावा, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों के साथ संभावित सहयोग पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जिससे भारत वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकेगा।
प्रौद्योगिकी में नवाचार और निवेश के अवसर
राष्ट्रीय विद्युत योजना में प्रेषण क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीक के समावेश पर भी जोर दिया गया है, जिसमें हाइब्रिड सबस्टेशन्स, मोनोपोल संरचनाएँ, इंसुलेटेड क्रॉस आर्म्स, डायनेमिक लाइन रेटिंग, उच्च प्रदर्शन वाले कंडक्टर और 1200 केवी एसी तक की अधिकतम संचालित वोल्टेज का उन्नयन शामिल हैं। इसके साथ ही, प्रेषण क्षेत्र में कौशल विकास पर भी जोर दिया गया है, ताकि एक प्रशिक्षित कार्यबल उपलब्ध हो सके जो इन उन्नत प्रणालियों का प्रबंधन कर सके।
कई प्रेषण योजनाएँ निर्माणाधीन हैं, कई योजनाएँ निविदा प्रक्रिया में हैं और अन्य योजनाएँ पाइपलाइन में हैं। यह योजना 2032 तक प्रेषण क्षेत्र में 9,15,000 करोड़ रुपये से अधिक के विशाल निवेश अवसरों का संकेत देती है, जिससे निवेशकों के लिए ऊर्जा बाजार में प्रवेश के व्यापक अवसर खुल रहे हैं।
राष्ट्रीय विद्युत योजना का शुभारंभ भारत की नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता और आधुनिक ऊर्जा ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो देश को एक स्थायी और भरोसेमंद ऊर्जा भविष्य प्रदान करेगा।