हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित मस्जिद के अवैध हिस्से को हटाने के मामले में नया मोड़ सामने आया है। नगर नियोजन विभाग (TCP) के प्रधान सचिव देवेश कुमार ने नगर निगम (MC) के आयुक्त एचएस राणा के 13 सितंबर के आदेशों पर रोक लगा दी है। इन आदेशों के तहत आयुक्त ने मस्जिद की दो मंजिलों को हटाने के लिए 30 दिन की अवधि निर्धारित की थी।
इस विकास के बाद मुस्लिम समुदाय को फिलहाल राहत मिली है। अब आगामी आदेशों तक मस्जिद पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी। मंडी मस्जिद मामले की अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को प्रधान सचिव टीसीपी के कोर्ट में होगी, जहां नगर निगम को ऑफिस रिकॉर्ड के साथ अपना पक्ष रखने के लिए कहा गया है। यह रिकॉर्ड इस मामले का अंतिम फैसला निर्धारित करेगा।
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
प्रधान सचिव की कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने अवैध निर्माण के आरोपों को खारिज किया। उनका कहना था कि 2013 में भारी बारिश के कारण मस्जिद का मुख्य हिस्सा गिर गया था, जिसे अगस्त 2023 में पुनर्निर्माण किया गया। मुस्लिम पक्ष का यह भी आरोप है कि आयुक्त ने उनकी दलीलें सुनने से पहले ही फैसला सुना दिया, जिससे उनकी आवाज़ को नजरअंदाज किया गया।
मुस्लिम पक्ष ने बताया कि मस्जिद का निर्माण 1936 से खसरा नंबर 478 पर किया गया था। 1962 में राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव के बाद, मस्जिद के लिए खसरा नंबर 1280, 2216, और 2117 के अंतर्गत 300.53 वर्ग मीटर तथा खसरा नंबर 2218 से 2221 तक 85.6 वर्ग मीटर की जगह दर्ज की गई। कुल मिलाकर, यह क्षेत्र 386.19 वर्ग मीटर का है और इसे “अहले इस्लाम” के नाम से जाना जाता है। मुस्लिम समुदाय का दावा है कि मस्जिद लगभग 100 वर्षों से इसी स्थान पर स्थित है।
नगर निगम के आदेशों की पृष्ठभूमि
13 सितंबर को नगर निगम आयुक्त एचएस राणा द्वारा जारी किए गए आदेशों के अनुसार, मस्जिद की दो मंजिलों को 30 दिन के भीतर हटाना था। इस आदेश ने मंडी के जेल रोड पर बनी तीन मंजिला मस्जिद के निर्माण को लेकर विवाद को और बढ़ा दिया। मुस्लिम समुदाय ने इस मस्जिद के निर्माण का समर्थन करते हुए इसे उनकी धार्मिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।
निष्कर्ष
मंडी मस्जिद मामले में आने वाले दिनों में सुनवाई की प्रक्रिया और प्रशासनिक निर्णयों से यह स्पष्ट होगा कि क्या मुस्लिम समुदाय को अपनी धार्मिक संपत्ति को सुरक्षित रखने का अधिकार मिलेगा या नहीं। वर्तमान में, प्रधान सचिव के आदेश ने मस्जिद के पक्ष में कुछ राहत प्रदान की है, लेकिन इस मुद्दे का समाधान अब आगामी सुनवाई पर निर्भर करेगा।