सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को न्याय की देवी की एक नई प्रतिमा स्थापित की गई, जो अपनी पुरानी छवि से पूरी तरह भिन्न है। इस नई प्रतिमा में न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी गई है, और उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। यह बदलाव न केवल दृश्य रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे न्याय की एक नई परिभाषा और संदेश छिपा हुआ है—अब कानून ‘अंधा’ नहीं है, बल्कि वह सच्चाई और विवेक के साथ न्याय करेगा।
इस नई प्रतिमा को सर्वोच्च न्यायालय के जजों के पुस्तकालय में स्थापित किया गया है। जहां पहले न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी कानून के समक्ष समानता का प्रतीक मानी जाती थी, वहीं अब यह परिवर्तन यह दर्शाता है कि न्याय व्यवस्था खुले दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के साथ काम करेगी। कानून अब आंखों पर पट्टी बांधकर, बिना भेदभाव के फैसले करने के बजाय, संविधान और सत्य का मार्गदर्शन करेगी।
औपनिवेशिक विरासत से मुक्ति की दिशा में कदम
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के आदेश पर यह प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसे औपनिवेशिक काल की न्याय व्यवस्था से छुटकारा पाने की दिशा में एक और कदम माना जा रहा है। जैसे हाल ही में भारतीय दंड संहिता को बदलकर भारतीय न्याय संहिता की स्थापना की गई है, वैसे ही यह मूर्ति भी न्याय के नए रूप और भारतीय संविधान के महत्व को उजागर करती है।
तलवार की जगह संविधान का महत्व
इस प्रतिमा में तलवार को हटाकर संविधान का स्थान देना एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। तलवार शक्ति और दंड का प्रतीक थी, जबकि संविधान न्याय के मूल सिद्धांतों का प्रतीक है। संविधान वह पुस्तक है, जिसमें देश के सभी नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य तय किए गए हैं। यह संदेश देने का प्रयास है कि अब न्याय केवल दंडात्मक नहीं होगा, बल्कि संविधान के मार्गदर्शन में संतुलित और समावेशी होगा।
नई न्याय व्यवस्था का संकेत
इस नई मूर्ति के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया जा रहा है कि अब देश में न्याय प्रणाली अधिक संवेदनशील और विवेकपूर्ण होगी। यह प्रतीक है कि कानून अब ‘अंधा’ नहीं है, बल्कि न्यायपालिका संविधान के अधीन रहकर न्याय करेगी। अदालतें अब केवल शक्ति और प्रभाव से प्रभावित नहीं होंगी, बल्कि संविधान की नजर में सभी को समान माना जाएगा और निष्पक्ष न्याय होगा।
निष्कर्ष
न्याय की देवी की इस नई प्रतिमा के साथ सुप्रीम कोर्ट ने न केवल एक प्रतीकात्मक बदलाव किया है, बल्कि यह बदलाव न्यायिक व्यवस्था की नई दिशा और दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। यह बदलाव न्याय प्रणाली में अधिक पारदर्शिता, संवेदनशीलता और संविधान के महत्व को स्थापित करता है। यह संदेश है कि अब कानून ‘अंधा’ नहीं है, बल्कि संविधान की रोशनी में न्याय किया जाएगा।