सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में सार्वजनिक-निजी अनुबंधों में एकतरफा मध्यस्थ नियुक्ति से संबंधित अनुच्छेद को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया है। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे प्रावधानों से अनुबंध में पारदर्शिता और निष्पक्षता की भावना को नुकसान पहुंचता है।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, पी. एस. नरसिम्हा, पंकज मित्तल और मनोज मिश्रा शामिल थे, ने इस महत्वपूर्ण फैसले को सुनाया। इस मामले पर सीजेआई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति मित्तल और मिश्रा ने संयुक्त रूप से एक अलग निर्णय लिखा, जबकि न्यायमूर्ति रॉय और नरसिम्हा ने अपने-अपने अलग निर्णय दिए।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया के हर चरण में, विशेष रूप से मध्यस्थों की नियुक्ति के समय, पक्षों के समानता के अधिकार का पालन किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा, “सार्वजनिक-निजी अनुबंधों में एकतरफा मध्यस्थ नियुक्ति से संबंधित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मध्यस्थता अधिनियम में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) को संभावित मध्यस्थों के पैनल तैयार करने से नहीं रोका गया है, लेकिन यह अनुबंध में दूसरे पक्ष को उन्हीं पैनल से मध्यस्थ चुनने की अनिवार्यता नहीं थोप सकता।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा, “एक ऐसा अनुबंध जिसमें एक पक्ष को एकतरफा रूप से मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है, वह स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर शंका उत्पन्न करता है।”