नवम्बर 22, 2024

अंटार्कटिका में तेजी से बढ़ता हरित आवरण: जलवायु संकट के गंभीर प्रभावों की चेतावनी

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पिछले कुछ दशकों में अंटार्कटिक प्रायद्वीप में एक बड़ा परिवर्तन देखा गया है, जहां पौधों का आवरण दस गुना से अधिक बढ़ गया है। 1986 के उपग्रह डेटा के अनुसार, उस समय वहां एक वर्ग किलोमीटर से भी कम वनस्पति थी, लेकिन 2021 तक यह लगभग 12 वर्ग किलोमीटर तक फैल गई। इस तेजी से हो रहे विस्तार में मुख्य रूप से काई शामिल है, जो विशेष रूप से 2016 के बाद तेज़ी से बढ़ी है। यह बदलाव स्पष्ट रूप से अंटार्कटिका पर जलवायु परिवर्तन के गहरे प्रभाव को दर्शाता है, जो अब वैश्विक औसत से तेज़ी से गर्म हो रहा है।

ऐसे क्षेत्र में वनस्पति का फैलाव, जो हमेशा से बर्फ और नंगे चट्टानों का पर्याय रहा है, जलवायु संकट के व्यापक प्रभावों को दर्शाता है। ठंडी परिस्थितियों में भी काई जैसे पौधों का उगना यह बताता है कि पहले जहां जीवन असंभव था, वहां अब जलवायु गर्म होने के कारण परिस्थितियाँ अनुकूल हो रही हैं।

हालांकि यह हरित आवरण बढ़ता जीवन संकेतित करता है, इसके गहरे परिणाम भी हो सकते हैं। अंटार्कटिक की नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह वनस्पति विस्तार एक नई चुनौती प्रस्तुत कर सकता है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह विदेशी आक्रामक प्रजातियों के लिए रास्ता खोल सकता है, जो यहां की मौलिक जैव विविधता को खतरे में डाल सकती हैं। यदि इस क्षेत्र में अनुकूल परिस्थितियाँ बनती रहीं, तो बाहरी प्रजातियाँ स्थानीय जीवों को पछाड़ सकती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में अप्रत्याशित परिवर्तन हो सकते हैं।

यह घटना केवल अंटार्कटिका तक सीमित नहीं है। आर्कटिक क्षेत्र में भी ऐसा ही हरित आवरण बढ़ता दिख रहा है, जहां पिघलती बर्फ और गर्म होती जलवायु के कारण पौधों का फैलाव हो रहा है। 2021 में, पहली बार ग्रीनलैंड की विशाल बर्फ की चादर पर बर्फ की जगह बारिश हुई, जो जलवायु परिवर्तन के वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रभावों को और स्पष्ट करती है।

ध्रुवीय क्षेत्रों में वनस्पति का यह तेज़ी से फैलाव जलवायु संकट के व्यापक प्रभावों का जीवंत संकेत है। केवल बर्फ के पिघलने तक सीमित नहीं, बल्कि इन पारिस्थितिक तंत्रों का रूपांतरण यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम हर कोने में पहुंच रहे हैं। इससे बचाव और नुकसान को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि इन संवेदनशील क्षेत्रों को आगे होने वाले प्रभावों से बचाया जा सके।

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