फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय: बलात्कार और पोक्सो अधिनियम मामलों के शीघ्र न्याय की दिशा में एक अहम पहल

भारत सरकार ने बलात्कार और पोक्सो अधिनियम से जुड़े मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (FTSC) की स्थापना की है। यह पहल आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 के तहत की गई थी और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश (स्वप्रेरणा रिट संख्या 1/2019) के बाद अक्टूबर 2019 में इसे लागू किया गया। इस योजना का उद्देश्य न्याय प्रणाली को तेज और अधिक प्रभावी बनाना है, जिससे पीड़ितों को त्वरित न्याय मिल सके।
योजना का विस्तार और वर्तमान स्थिति
यह योजना दो बार बढ़ाई जा चुकी है, जिसमें नवीनतम विस्तार 31 मार्च 2026 तक किया गया है। सरकार का लक्ष्य 790 फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों की स्थापना करना है। 31 दिसंबर 2024 तक, भारत के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 747 FTSC कार्यरत हैं, जिनमें से 406 विशेष रूप से पोक्सो (e-POCSO) मामलों के लिए समर्पित हैं।
इन अदालतों ने 31 दिसंबर 2024 तक बलात्कार और पोक्सो अधिनियम से जुड़े लगभग 3,00,000 मामलों का निपटारा किया है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि ये विशेष अदालतें गंभीर अपराधों के त्वरित निपटारे में प्रभावी साबित हो रही हैं।
राज्यों में FTSC की स्थिति
भारत में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में FTSC की संख्या वर्षवार इस प्रकार रही है:
योजना का महत्व
- शीघ्र न्याय प्रक्रिया – फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों की मदद से मामलों का निपटारा तेजी से हो रहा है।
- पीड़ितों के लिए राहत – न्याय प्रक्रिया में देरी से पीड़ितों को मानसिक और भावनात्मक आघात झेलना पड़ता है, लेकिन FTSC उन्हें जल्दी न्याय दिलाने में मदद कर रही हैं।
- कानूनी सुधार और प्रभावी न्यायिक व्यवस्था – यह पहल भारत की न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने में सहायक है।
- ई-पोक्सो न्यायालयों की स्थापना – बाल यौन अपराध संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत आने वाले मामलों के त्वरित निपटारे के लिए विशेष अदालतें बनाई गई हैं।
चुनौतियाँ और आगे की राह
हालांकि FTSC ने कई मामलों का तेजी से निपटारा किया है, लेकिन अभी भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- संसाधनों की कमी – कई राज्यों में न्यायालयों को पर्याप्त संसाधन नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है।
- न्यायाधीशों की कमी – कई अदालतों में न्यायाधीशों के पद खाली पड़े हैं, जिससे मामलों के निपटारे की गति धीमी हो सकती है।
- तकनीकी और प्रशासनिक बाधाएँ – न्यायालयों में डिजिटल प्रणाली और अन्य प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है, जिससे न्याय प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और प्रभावी हो सके।
निष्कर्ष
फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों की स्थापना एक ऐतिहासिक और प्रभावी पहल है, जो बलात्कार और पोक्सो अधिनियम से जुड़े मामलों में शीघ्र न्याय दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सरकार को इस योजना को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए संसाधनों की उपलब्धता, न्यायाधीशों की नियुक्ति और डिजिटल न्याय प्रणाली के उपयोग पर ध्यान देना होगा। इस पहल से न केवल पीड़ितों को जल्द न्याय मिलेगा, बल्कि भारत की न्याय प्रणाली में आम लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा।