इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश: यूपी की 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण की अनियमितता ?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती की मेरिट सूची को रद्द कर दिया है, जिसे अब राज्य सरकार को तीन महीने के अंदर फिर से तैयार करना होगा। यह आदेश आरक्षण नियमों और बेसिक शिक्षा नियमावली के उल्लंघन को लेकर दायर की गई याचिका पर आया है।
भर्ती की पृष्ठभूमि
विवाद की शुरुआत 2018 में हुई जब उत्तर प्रदेश सरकार ने 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया। इस भर्ती की परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई थी। भर्ती के दौरान, अनारक्षित श्रेणी के लिए कट-ऑफ 67.11 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 66.73 प्रतिशत निर्धारित किया गया था। परिणामस्वरूप, करीब 68,000 अभ्यर्थियों को नौकरी मिली, लेकिन इसमें आरक्षण नियमों के उल्लंघन के आरोप उठने लगे।
आरक्षण के नियमों की अनदेखी
अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि भर्ती में आरक्षण के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया। बेसिक शिक्षा नियमावली-1981 के अनुसार, ओबीसी वर्ग का अभ्यर्थी यदि अनारक्षित श्रेणी के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे अनारक्षित श्रेणी में ही नौकरी मिलनी चाहिए, न कि ओबीसी कोटे से। आरोप है कि इस नियम का पालन नहीं हुआ, जिससे ओबीसी वर्ग को सही संख्या में आरक्षण नहीं मिला।
इसके अलावा, एससी वर्ग के अभ्यर्थियों को भी अपेक्षित 21 प्रतिशत आरक्षण की जगह मात्र 16.6 प्रतिशत मिला। प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों का दावा है कि भर्ती में करीब 19,000 सीटों पर घोटाला हुआ। इसके चलते अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में भी शिकायत की।
हाईकोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए मौजूदा मेरिट सूची को रद्द कर दिया। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर नई मेरिट लिस्ट तैयार करे, जिसमें आरक्षण के नियमों और बेसिक शिक्षा नियमावली का पूरा पालन हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि नई सूची में मेरिट और आरक्षण की विसंगतियों को ठीक किया जाए।
सरकारी प्रतिक्रिया और भविष्य की राह
इस आदेश के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार को एक नई मेरिट सूची तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह स्थिति उन हजारों शिक्षकों के लिए भी असमंजस का कारण बन गई है जो पिछले चार सालों से कार्यरत हैं। उनके भविष्य की स्थिरता अब इस नए आदेश के बाद सस्पेंस में है।
संबंधित नेताओं ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है। केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने हाईकोर्ट के फैसले को सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया है। पटेल ने कहा कि यह आदेश वंचित वर्ग के लिए न्याय सुनिश्चित करेगा और वह इसे लंबे समय से उठाती आ रही थीं।
समाज और शिक्षा पर प्रभाव
इस निर्णय का समाज और शिक्षा क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। नई मेरिट लिस्ट के जारी होने के बाद, यह देखना होगा कि कितने अभ्यर्थियों को उनकी सही स्थिति और आरक्षण के अनुसार नौकरी मिलती है। यह मामला न केवल भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि आरक्षण नियमों की सख्ती से पालना कितना महत्वपूर्ण है।