यूक्रेन-रूस युद्ध : नए युग का वैश्विक संग्राम

दुनिया के इतिहास में कई युद्ध हुए हैं, परंतु यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा संघर्ष 21वीं सदी की भू-राजनीति का सबसे जटिल उदाहरण बन चुका है। यह केवल दो पड़ोसी देशों का विवाद नहीं है, बल्कि आधुनिक विश्व व्यवस्था की दिशा तय करने वाला निर्णायक अध्याय है।
युद्ध की जड़ें कहाँ हैं?
यूक्रेन लंबे समय से यूरोपीय संघ और नाटो के करीब जाने की कोशिश करता रहा है, जबकि रूस इसे अपने पारंपरिक प्रभाव-क्षेत्र से दूरी मानता है। रूस के दृष्टिकोण में यूक्रेन केवल भौगोलिक पड़ोसी ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ हिस्सा है। यही टकराव 2022 में खुले युद्ध का रूप ले बैठा।
मानवीय पीड़ा
इस युद्ध ने इंसानियत को गहरे जख्म दिए हैं। लाखों लोग शरणार्थी बनकर यूरोप के विभिन्न देशों में शरण लेने को मजबूर हुए। हजारों परिवार टूट गए, बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए और बुनियादी ढाँचे — सड़कें, अस्पताल, स्कूल — सब मलबे में बदलते चले गए। यह संघर्ष केवल सैनिक मोर्चों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आम नागरिकों की रोज़मर्रा की जिंदगी को तबाह कर गया।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर
यूक्रेन गेहूं और सूरजमुखी तेल का बड़ा निर्यातक है। युद्ध के चलते खाद्यान्न आपूर्ति बाधित हुई, जिससे एशिया और अफ्रीका के कई देशों में भोजन की कमी बढ़ी। दूसरी ओर, यूरोप की ऊर्जा निर्भरता रूस की गैस पर रही है। जब आपूर्ति संकट गहराया तो महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक अस्थिरता पूरी दुनिया में महसूस की जाने लगी।
शक्ति-संतुलन की लड़ाई
यह युद्ध केवल सीमाओं का विवाद नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन का खेल है। एक ओर अमेरिका और नाटो देश यूक्रेन को सैन्य, वित्तीय और तकनीकी मदद देते हैं, वहीं दूसरी ओर रूस को चीन सहित कुछ देशों का रणनीतिक समर्थन प्राप्त है। परिणामस्वरूप, यह संघर्ष शीत युद्ध जैसी परिस्थितियों को दोहराता दिखाई देता है।
आगे की चुनौतियाँ
सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि यह युद्ध आखिरकार कब थमेगा। अब तक हुई वार्ताएँ स्थायी हल नहीं निकाल पाई हैं। अगर यह युद्ध और लंबा खिंचता है तो इसका दुष्प्रभाव केवल यूक्रेन और रूस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया को राजनीतिक अस्थिरता, ऊर्जा संकट और मानवीय त्रासदी के रूप में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
