नवम्बर 21, 2024

डोनाल्ड ट्रंप की उत्तर कोरिया नीति: कूटनीति और विवाद का मिश्रण

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डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल (2017-2021) के दौरान उनकी उत्तर कोरिया नीति वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण विषय रही। ट्रंप ने अपने आक्रामक बयानबाजी और असामान्य कूटनीतिक दृष्टिकोण से उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन के साथ संबंधों को एक नए स्तर पर पहुंचाया।

प्रारंभिक आक्रामकता: “रॉकेट मैन” और परमाणु धमकी

ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति पद के शुरुआती दिनों में उत्तर कोरिया के खिलाफ कड़ी भाषा का इस्तेमाल किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए एक भाषण में उन्होंने किम जोंग-उन को “रॉकेट मैन” कहकर संबोधित किया और उत्तर कोरिया को “पूरी तरह नष्ट” करने की धमकी दी। इन बयानों से दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया।

इस समय, उत्तर कोरिया ने लगातार परमाणु परीक्षण किए और लंबी दूरी की मिसाइलों का परीक्षण करके वैश्विक शक्तियों को चुनौती दी। ट्रंप प्रशासन ने उत्तर कोरिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन जुटाने की कोशिश की।

अप्रत्याशित मोड़: कूटनीतिक वार्ता का आरंभ

अत्यधिक तनावपूर्ण माहौल के बाद, ट्रंप ने अप्रत्याशित रूप से कूटनीति का रास्ता अपनाया। उन्होंने किम जोंग-उन को बातचीत के लिए आमंत्रित किया, और जून 2018 में सिंगापुर में दोनों नेताओं के बीच ऐतिहासिक शिखर वार्ता हुई।

इस शिखर बैठक में दोनों नेताओं ने कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण (डिन्यूक्लियराइजेशन) की दिशा में काम करने पर सहमति व्यक्त की। हालांकि, यह वार्ता ठोस समझौतों में तब्दील नहीं हो सकी, लेकिन यह पहली बार था जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उत्तर कोरियाई नेता से मुलाकात की।

असफलता और आलोचना

कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद, ट्रंप की उत्तर कोरिया नीति को ठोस परिणाम देने में विफल माना गया। फरवरी 2019 में हनोई, वियतनाम में आयोजित दूसरी शिखर वार्ता बिना किसी समझौते के समाप्त हो गई। उत्तर कोरिया ने अपनी परमाणु कार्यक्रम को रोकने की शर्त पर प्रतिबंधों में पूरी तरह से राहत की मांग की, जिसे ट्रंप ने अस्वीकार कर दिया।

इसके बाद, दोनों देशों के बीच बातचीत लगभग रुक गई। उत्तर कोरिया ने पुनः मिसाइल परीक्षण शुरू किए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि कूटनीतिक वार्ताओं का कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा।

ट्रंप की नीति की विशेषताएं

1. व्यक्तिगत कूटनीति पर जोर: ट्रंप ने पारंपरिक राजनयिक प्रक्रियाओं से हटकर व्यक्तिगत संबंधों पर अधिक ध्यान दिया। उन्होंने किम जोंग-उन को पत्र लिखे और उन्हें “दोस्त” कहकर संबोधित किया।

2. प्रतिबंध और दबाव की रणनीति: ट्रंप प्रशासन ने उत्तर कोरिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका अलगाव सुनिश्चित करने की कोशिश की।

3. अनिर्णायक वार्ता: ट्रंप-किम वार्ताओं ने भले ही कूटनीति को बढ़ावा दिया, लेकिन वे परमाणु निरस्त्रीकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में विफल रहीं।

वैश्विक प्रभाव और विरासत

ट्रंप की उत्तर कोरिया नीति ने वैश्विक राजनीति में मिश्रित प्रभाव डाला। उनकी वार्ताओं ने उम्मीद की एक किरण जगाई, लेकिन उनके ठोस परिणाम न निकलने से निराशा भी हुई।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप ने उत्तर कोरिया के साथ संवाद का रास्ता खोलकर एक नई परंपरा शुरू की, लेकिन उनकी नीतियों की लंबी अवधि में सफलता संदिग्ध रही। उनकी व्यक्तिगत कूटनीति को कई बार अपरिपक्व और अनियमित भी कहा गया।

निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप की उत्तर कोरिया नीति एक मिश्रण थी – आक्रामक बयानबाजी और ऐतिहासिक कूटनीति के प्रयासों का। हालांकि, उनकी रणनीति ने कोरियाई प्रायद्वीप पर शांति लाने में कोई ठोस उपलब्धि हासिल नहीं की। इसके बावजूद, ट्रंप का यह अनोखा दृष्टिकोण आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए उत्तर कोरिया से निपटने की दिशा में एक नई राह तैयार कर गया।

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