नवम्बर 21, 2024

चीन की बढ़ती नौसैनिक ताकत: अमेरिका के लिए बढ़ती चिंता

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अनूप सिंह

चीन की समुद्री शक्ति तेजी से बढ़ रही है, और अब उसने नौसैनिक जहाजों की संख्या के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। यह महत्वपूर्ण विकास वैश्विक भू-राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि यह चीन की व्यापक महत्वाकांक्षाओं और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर उनके प्रभाव को दर्शाता है।

जिबूती में चीन का महत्वपूर्ण विदेशी सैन्य अड्डा

अपनी बढ़ती नौसैनिक ताकत के बावजूद, चीन के पास केवल एक विदेशी सैन्य अड्डा है, जो अफ्रीका के जिबूती में स्थित है। साल 2016 में स्थापित यह अड्डा चीन को अफ्रीका के हॉर्न क्षेत्र में एक रणनीतिक स्थान प्रदान करता है, जो वैश्विक व्यापार मार्गों और सुरक्षा अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है। यह अड्डा चीन को अपनी आर्थिक रुचियों, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।

अमेरिका की व्यापक वैश्विक सैन्य उपस्थिति

इसके विपरीत, अमेरिका लगभग 750 सैन्य अड्डों का संचालन करता है, जिनमें से प्रमुख अड्डे चीन के नज़दीकी क्षेत्रों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और यहां तक कि जिबूती में भी स्थित हैं। यह अमेरिका की लंबे समय से स्थापित वैश्विक पहुंच और उसकी सामरिक स्थिति को दर्शाता है। जिबूती में अमेरिकी उपस्थिति उस क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करती है, जहां अब दोनों महाशक्तियां अपनी सैन्य गतिविधियां संचालित कर रही हैं।

वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव

चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति और जिबूती में सैन्य अड्डे की स्थापना ने अमेरिका में चिंताएं बढ़ा दी हैं। इसे चीन की उस व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें वह अमेरिका के प्रभुत्व को विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चुनौती देना चाहता है। जैसे-जैसे चीन अपने नौसैनिक बलों का आधुनिकीकरण कर रहा है, अमेरिका यह देखने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में अपनी रणनीतिक बढ़त कैसे बनाए रखी जाए।

नई प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र

समुद्री क्षेत्र अब अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा का एक महत्वपूर्ण मंच बनता जा रहा है। जबकि वैश्विक सैन्य ढांचे के मामले में चीन अभी भी अमेरिका से पीछे है, जिबूती जैसे क्षेत्रों में उसकी केंद्रित कोशिशें उसकी लंबी अवधि की रणनीति का संकेत देती हैं, जिसमें वह अपने प्रभाव को बढ़ाकर अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देना चाहता है। यह बढ़ती प्रतिद्वंद्विता आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य को आकार देगी, क्योंकि दोनों राष्ट्र वैश्विक मंच पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगे।

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