खान से खुशहाली की ओर: सीसीएल की मछली पालन परियोजना से सामुदायिक सशक्तिकरण
सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL), कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी, ने छोड़ी गई खदानों को मछली पालन के केंद्र में बदलकर आर्थिक सशक्तिकरण और जैव विविधता को बढ़ावा दिया है। कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में, यह अभिनव पहल प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदार उपयोग करते हुए स्थानीय समुदायों और राज्य की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है।
सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान
सीसीएल की मछली पालन परियोजना एक बहुआयामी विकास मॉडल है जो केवल व्यावसायिक लाभ तक सीमित नहीं है। यह परियोजना आर्थिक कठिनाइयों और पर्यावरणीय संतुलन दोनों को संबोधित करती है। जल भरी हुई परित्यक्त खदानों को मछली पालन के केंद्र में बदलकर, सीसीएल स्थानीय लोगों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान कर रहा है और साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे रहा है।
झारखंड में फैली इस परियोजना में प्रमुख मछली प्रजातियाँ जैसे पंगासियस, रोहू, तिलापिया और कतला का उत्पादन होता है। यह पहल सैकड़ों परिवारों को सीधा लाभ पहुंचा रही है और उनकी आय में सुधार कर रही है।
प्रमुख परियोजनाएँ
1. रिलिगारा मछली पालन परियोजना: यह परियोजना हजारीबाग के अर्जड़ा क्षेत्र में स्थित है और 9.71 हेक्टेयर में फैली हुई है। यहाँ 20 मछली पिंजरे लगाए गए हैं, जिससे सालाना लगभग 9.6 टन मछलियों का उत्पादन होता है। इस परियोजना से रिलिगारा और बसकुदरा के लगभग 100 ग्रामीणों को प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है।
2. गिड़ी ए मछली पालन परियोजना: 28 हेक्टेयर में फैली यह परियोजना प्रारंभिक वर्ष में 0.72 टन मछली उत्पादन करती है। यहाँ 22 मछली पिंजरे लगाए गए हैं। इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सौंदर्यीकरण के लिए ₹45 लाख की सहायता मिली है और इसे रामसर साइट के रूप में प्रस्तावित किया गया है, जो इसकी पारिस्थितिकीय महत्ता को दर्शाता है।
3. बोकारो ओसीपी मछली पालन परियोजना: 4.22 हेक्टेयर में फैली इस परियोजना से 81 टन मछलियों का वार्षिक उत्पादन होता है और यह परियोजना 30 परिवारों के लिए रोजगार का स्रोत बनी हुई है।
4. सेंट्रल सौंडा मछली पालन परियोजना: बरकसयाल क्षेत्र में स्थित यह परियोजना तिलापिया मछली प्रजातियों के लिए 40 पिंजरे समर्पित करती है। नवंबर 2023 में स्थापित इस परियोजना से लगभग 250 ग्रामीणों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
5. करकट्टा ए और करकट्टा सी परियोजनाएँ: ये परियोजनाएँ क्षेत्रीय जलकृषि के प्रमुख स्रोत हैं। करकट्टा ए 1.8 हेक्टेयर में फैला है, जो 200 टन मछलियों का वार्षिक उत्पादन करता है, जबकि करकट्टा सी 4.5 हेक्टेयर में फैला है और 800 टन मछलियों का उत्पादन करता है।
सामुदायिक सशक्तिकरण और जैव विविधता को बढ़ावा
इन परियोजनाओं ने न केवल ग्रामीण समुदायों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी बढ़ावा दिया है। छोड़ी गई खदानों को मछली पालन केंद्रों में बदलकर, सीसीएल ने स्थानीय लोगों के जीवन में सुधार के साथ-साथ जल संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित किया है।
सतत औद्योगिक प्रथाओं का मॉडल
सीसीएल की ये परियोजनाएँ खनन क्षेत्रों में स्थायी विकास का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। 2025 तक कई और परियोजनाओं के पूरा होने के साथ, सीसीएल ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है, जो आर्थिक समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण दोनों को सुनिश्चित करता है।
अंत में, सीसीएल की मछली पालन परियोजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के साथ-साथ पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह पहल न केवल आर्थिक लाभ प्रदान कर रही है बल्कि स्थायी औद्योगिक प्रथाओं के लिए भी एक मॉडल बन गई है।