मध्य पूर्व संघर्ष में अमेरिका की भूमिका: एक व्यापक विश्लेषण
मध्य पूर्व में अमेरिका की भूमिका दशकों से विवादास्पद और बहुपक्षीय रही है। तेल, क्षेत्रीय स्थिरता, और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जैसे कई कारकों के कारण अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपने राजनीतिक गठबंधनों, सैन्य हस्तक्षेपों और कूटनीतिक पहलों के माध्यम से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इस भूमिका ने कभी-कभी संघर्षों को गहरा किया है, तो कभी शांति प्रयासों को आगे बढ़ाने की कोशिश की है।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और रणनीतिक हित
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका मध्य पूर्व में अपनी भूमिका बढ़ाने लगा, विशेष रूप से तेल संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करने और शीत युद्ध के दौरान सोवियत प्रभाव को रोकने के लिए। इस उद्देश्य से अमेरिका ने सऊदी अरब, इजरायल, और कभी-कभी ईरान जैसे देशों के साथ गहरे संबंध बनाए। धीरे-धीरे, अमेरिकी नीतियों का ध्यान केवल ऊर्जा सुरक्षा से हटकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, परमाणु अप्रसार, और लोकतांत्रिक शासन की स्थापना तक बढ़ गया।
2. इजरायल का समर्थन और क्षेत्रीय प्रभाव
अमेरिका ने 1948 से ही इजरायल का समर्थन किया है, जो कि मध्य पूर्व के अन्य देशों के साथ उसके संबंधों में एक प्रमुख बाधा बना हुआ है। इजरायल को आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान करना अमेरिकी नीति का एक अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इससे अरब देशों में अमेरिकी नीतियों के प्रति विरोध की भावना भी उत्पन्न हुई है। इस समर्थन के कारण, कई अरब देशों ने इसे फिलिस्तीन की आकांक्षाओं के विरोध में देखा है, जिससे इस क्षेत्र में अमेरिकी कूटनीति के लिए चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
3. ईरान-इराक युद्ध और खाड़ी में भूमिका
1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध में अमेरिका ने पहले तटस्थता बनाए रखी, लेकिन बाद में इराक का समर्थन किया ताकि ईरानी इस्लामी क्रांति के प्रभाव को रोका जा सके। इस समर्थन में सैन्य खुफिया और आर्थिक सहायता शामिल थी, जिससे खाड़ी क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने की अमेरिकी रणनीति का संकेत मिला। इसके बावजूद, इस हस्तक्षेप ने अमेरिका और ईरान के बीच तनाव को और अधिक बढ़ा दिया।
4. खाड़ी युद्ध और इराक पर आक्रमण
1991 में, कुवैत से इराकी बलों को निकालने के लिए अमेरिका ने खाड़ी युद्ध में नेतृत्व किया। इस हस्तक्षेप ने मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य शक्ति को दर्शाया और क्षेत्रीय प्रभुत्व को मजबूत किया। लेकिन 2003 में इराक पर आक्रमण, जिसे अमेरिका ने परमाणु हथियारों के खतरे और लोकतंत्र की स्थापना के आधार पर न्यायोचित ठहराया, ने क्षेत्र को अस्थिर कर दिया। सद्दाम हुसैन के पतन से एक सत्ता शून्यता उत्पन्न हुई जिससे क्षेत्रीय संघर्ष और आईएसआईएस जैसे चरमपंथी संगठनों का उदय हुआ।
5. आतंकवाद के खिलाफ युद्ध
9/11 के हमलों के बाद, अमेरिका ने मध्य पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध शुरू किया, जिसमें अफगानिस्तान और इराक में हस्तक्षेप शामिल था। अमेरिका ने क्षेत्र में अपना सैन्य दबदबा बढ़ाया और कई देशों में आतंकवाद-रोधी अभियान चलाए। हालांकि, इन प्रयासों का उद्देश्य क्षेत्र को स्थिर बनाना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कुछ स्थानों पर संघर्ष और अस्थिरता भी बढ़ी।
6. ईरानी परमाणु समझौता और हालिया तनाव
अमेरिका का ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को लेकर हमेशा से विरोध रहा है, खासकर इजरायल और सऊदी अरब जैसे सहयोगी देशों के प्रति चिंता के कारण। 2015 में ओबामा प्रशासन ने ईरान के साथ एक परमाणु समझौता किया, जिसे ज्वाइंट कम्प्रिहेन्सिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य ईरान की परमाणु गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना था। लेकिन 2018 में ट्रम्प प्रशासन के इस समझौते से हटने के फैसले ने दोनों देशों के बीच तनाव को फिर से बढ़ा दिया, जिससे खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा बढ़ गया।
7. क्षेत्रीय सहयोगियों का समर्थन और प्रॉक्सी युद्ध
अमेरिका ने सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों का समर्थन किया है और इनको अत्याधुनिक हथियार और खुफिया जानकारी प्रदान की है। इन संबंधों के कारण, अमेरिका ने यमन में सऊदी नेतृत्व वाले हस्तक्षेप का समर्थन किया है, जिसने एक मानवीय संकट उत्पन्न कर दिया है। इस तरह की प्रॉक्सी युद्धों में अमेरिका का अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप क्षेत्रीय संघर्षों में जटिलता बढ़ाता है और इन युद्धों के प्रति अंतर्राष्ट्रीय आलोचना भी बढ़ाता है।
8. शांति प्रयास और कूटनीतिक पहलें
अपने सैन्य हस्तक्षेपों के बावजूद, अमेरिका ने मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के लिए कूटनीतिक पहलें भी की हैं। उदाहरण के लिए, 1978 में कैम्प डेविड समझौते ने मिस्र और इजरायल के बीच शांति स्थापित करने में मदद की। हालांकि, इन प्रयासों को क्षेत्रीय मुद्दों, राजनीतिक दबावों, और जटिलताओं के कारण अक्सर सीमित सफलता मिली है।
निष्कर्ष: मध्य पूर्व संघर्षों में अमेरिका की भूमिका और इसके प्रभाव
मध्य पूर्व में अमेरिका की भूमिका ऊर्जा सुरक्षा, सहयोगियों की सुरक्षा, और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए बनाई गई है। हालांकि, इस क्षेत्र में अमेरिकी हस्तक्षेप ने कभी-कभी अस्थिरता और संघर्षों को और भी बढ़ा दिया है। भविष्य में, अमेरिका को अपने सहयोगियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को संतुलित करना, सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना, और इस अस्थिर क्षेत्र में स्थिरता के लिए नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।