महाकुंभ 2025: 550 मिलियन से अधिक श्रद्धालुओं ने किया पवित्र स्नान, ऐतिहासिक आयोजन बना आस्था का केंद्र
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प्रयागराज: महाकुंभ 2025 का आयोजन इस बार ऐतिहासिक बन गया है, जहां अब तक 550 मिलियन (55 करोड़) से अधिक श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान कर चुके हैं। 18 फरवरी 2025 तक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस दिन शाम 8 बजे तक ही 12.6 मिलियन (1.26 करोड़) से अधिक भक्तों ने पुण्य अर्जित करने के लिए डुबकी लगाई।
धार्मिक आस्था और विशाल जनसमूह का संगम
महाकुंभ केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। यह 45 दिनों तक चलने वाला एक महोत्सव है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आकर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर स्वयं को आध्यात्मिक रूप से पवित्र करने का प्रयास करते हैं। इस बार महाकुंभ में भक्तों की संख्या ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, जिससे यह आयोजन विश्व का सबसे बड़ा मानव समागम बन गया है।
प्रमुख संतों और अखाड़ों का शाही स्नान
महाकुंभ के दौरान प्रमुख संतों और विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों ने परंपरागत शाही स्नान किया। अखाड़ों के संतों की भव्य पेशवाई और उनके साथ श्रद्धालुओं का विशाल समूह इस आयोजन की पवित्रता को और भी दिव्यता प्रदान करता है।
सुरक्षा और प्रशासन की मजबूत व्यवस्था
इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद किया है। संगम क्षेत्र में स्नान करने वालों के लिए अस्थायी शिविर, भोजनालय, स्वास्थ्य सुविधाएं और ट्रैफिक प्रबंधन की विशेष व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, ड्रोन और हेलिकॉप्टर से भीड़ पर निगरानी रखी जा रही है ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके।
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने किया स्नान
18 फरवरी को केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी अपने परिवार के साथ महाकुंभ पहुंचे और संगम में पवित्र स्नान किया। स्नान के बाद उन्होंने इस आध्यात्मिक अनुभव को “अद्भुत” बताया और कहा कि कुंभ मेले की व्यवस्थाएं बहुत ही उत्कृष्ट हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं की आस्था और आयोजन की भव्यता की सराहना की।
महाकुंभ 2025 का समापन और आगे की उम्मीदें
महाकुंभ 2025 का समापन 26 फरवरी को होगा, लेकिन उससे पहले लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान के लिए पहुंचेंगे। इस बार के आयोजन को एक ऐतिहासिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है, जिससे भारत की आध्यात्मिक धरोहर और सांस्कृतिक महत्व पूरी दुनिया में एक बार फिर से उजागर हुआ है।
यह महाकुंभ केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और एकता का भी अद्भुत उदाहरण है, जहां हर वर्ग और समुदाय के लोग एक साथ जुड़कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।