एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर हाई कोर्ट का सख्त निर्देश: राज्य सरकार को निगरानी तंत्र बनाने का आदेश
अभय सिंह [ रिपोर्टर कौशांबी ]
प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग के मामले में गंभीर चिंता जताते हुए राज्य सरकार को महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस एक्ट से जुड़े आर्थिक लाभ और झूठी शिकायतों की बढ़ती प्रवृत्ति पर नकेल कसने के लिए एक प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
झूठी शिकायतों का प्रभाव
कोर्ट ने कहा कि झूठी शिकायतें न केवल कानून का दुरुपयोग हैं, बल्कि यह न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसे मामलों में मुआवजा लेने वाले व्यक्तियों को धारा 182 और 214 के तहत दंडित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। ये धाराएं झूठी जानकारी देने और अन्यायपूर्ण लाभ लेने के लिए दंड का प्रावधान करती हैं।
निगरानी तंत्र की आवश्यकता
कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि जब तक निगरानी तंत्र स्थापित नहीं किया जाता, तब तक एफआईआर दर्ज होने से पहले आरोपों का सत्यापन अनिवार्य किया जाए। यह सुनिश्चित करेगा कि केवल वास्तविक पीड़ितों को ही सुरक्षा और मुआवजा दिया जाए। इस प्रक्रिया से न केवल न्याय का संरक्षण होगा, बल्कि झूठी शिकायतों की प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगेगा।
न्याय प्रणाली पर विश्वास
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एससी-एसटी एक्ट का गलत इस्तेमाल होने से न्याय प्रणाली पर संदेह उत्पन्न होता है और यह समाज में जनविश्वास को कमजोर करता है। न्यायालय का मानना है कि कानून का सही उपयोग ही समाज में समानता और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश राज्य सरकार के लिए एक स्पष्ट संकेत हैं कि उसे कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यह आवश्यक है कि समाज के सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा की जाए और झूठी शिकायतों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। इस दिशा में उठाए गए कदम न केवल न्याय प्रणाली की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण होंगे, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव भी लाएंगे।