प्रयागराज महाकुंभ भगदड़: प्रशासनिक नाकामी या भीड़ प्रबंधन की चूक?
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में मौनी अमावस्या के अवसर पर हुए भगदड़ कांड ने उत्तर प्रदेश सरकार की तैयारियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सरकार ने इस बार कुंभ को ऐतिहासिक रूप से “दिव्य और भव्य” बनाने का दावा किया था, लेकिन जब लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान के लिए उमड़े, तो प्रशासन की सारी व्यवस्थाएं धराशायी हो गईं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत हुई, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और चश्मदीदों के अनुसार, यह संख्या कहीं अधिक हो सकती है।
भगदड़ कैसे मची?
मौनी अमावस्या के दिन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान का विशेष महत्व होता है। इस बार अनुमान से कहीं अधिक श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे, जिससे भीड़ नियंत्रण करना प्रशासन के लिए कठिन हो गया। कई गवाहों के अनुसार, अचानक हुए धक्कामुक्की और अव्यवस्थित बैरिकेडिंग के कारण भगदड़ मच गई। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठियां भांजनी शुरू कर दीं, जिससे हालात और बिगड़ गए।
योगी सरकार विपक्ष और संतों के निशाने पर
इस त्रासदी के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार न केवल विपक्ष बल्कि संत समाज के निशाने पर भी आ गई है। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा,
“गंगा साफ नहीं हुई है, गौहत्या पर रोक नहीं लगी है, और अब कुंभ में श्रद्धालुओं की जान जा रही है। यह सरकार हमें तंबू और टेंट देकर खुश नहीं कर सकती। अगर गौहत्या नहीं रुकी और गंगा की शुद्धि नहीं हुई, तो हम 2027 में किसी और को सत्ता में लाने के लिए प्रयास करेंगे।”
इतिहास दोहराया गया?
1954 में भी प्रयागराज कुंभ में इसी तरह की भगदड़ हुई थी, जिसमें 500 से अधिक लोगों की जान गई थी। उस हादसे के बाद प्रशासन ने भीड़ नियंत्रण को लेकर कई सुधार किए थे, लेकिन इस बार की घटना ने दिखा दिया कि कुंभ जैसे विशाल आयोजनों के लिए मौजूदा व्यवस्थाएं अभी भी अपर्याप्त हैं।
सरकार की सफाई और जनता का गुस्सा
सरकार ने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं और मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन क्या मुआवजा उन लोगों की जान की भरपाई कर सकता है जो अपने विश्वास और आस्था के साथ कुंभ में आए थे? जनता और संत समाज अब इस बात की मांग कर रहे हैं कि इस घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और प्रशासनिक चूक पर सख्त कार्रवाई हो।
क्या होंगे आगे के कदम?
महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों में हर बार भीड़ बढ़ती जा रही है। यह समय की मांग है कि सरकार और प्रशासन आधुनिक तकनीकों का सहारा लें—CCTV सर्विलांस, डिजिटल एंट्री सिस्टम और आपातकालीन निकासी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। अगर ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई, तो कुंभ जैसे पवित्र आयोजनों की पवित्रता पर सवाल खड़े होने लगेंगे।
क्या यह प्रशासनिक लापरवाही थी या भीड़ प्रबंधन की विफलता? यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट होगा, लेकिन इस घटना ने निश्चित रूप से सरकार की तैयारियों को कठघरे में ला खड़ा किया है।