जुलाई 16, 2025
Anoop singh

मोहनजोदड़ो की खुदाई भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम और समृद्ध सभ्यताओं में से एक, सिंधु घाटी सभ्यता, के रहस्यों से पर्दा उठाने वाली एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही है। यह ऐतिहासिक स्थल वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है और इसकी खुदाई ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को मानव सभ्यता के प्राचीन स्वरूप से परिचित कराया।

खुदाई की शुरुआत

मोहनजोदड़ो की खुदाई 1922 ईस्वी में प्रारंभ हुई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अधिकारी आर. डी. बैनर्जी ने इस स्थल की खोज की और खुदाई का नेतृत्व किया। प्रारंभिक खुदाई में ही यहां से कुछ अद्भुत अवशेष और नगर नियोजन के प्रमाण मिलने लगे, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह कोई साधारण बस्ती नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित और उन्नत नगर था।

खुदाई में प्राप्त प्रमुख अवशेष

मोहनजोदड़ो की खुदाई से अनेक महत्वपूर्ण संरचनाएं और वस्तुएं प्राप्त हुईं। इनमें प्रमुख हैं:

  • महान स्नानागार (ग्रेट बाथ) – यह एक विशाल जलकुंड था जो ईंटों से बना हुआ था और इसके चारों ओर स्नान करने की विशेष व्यवस्था थी। माना जाता है कि यह धार्मिक अनुष्ठानों या सामूहिक स्नान के लिए प्रयुक्त होता था।
  • सुनियोजित सड़कों और गलियों का जाल – मोहनजोदड़ो की सड़कों का निर्माण बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से किया गया था। मुख्य सड़कें लगभग 9 मीटर चौड़ी थीं और गलियों का जाल पूरी नगरी को जोड़ता था।
  • जल निकासी प्रणाली – नगर में उत्कृष्ट जल निकासी व्यवस्था थी। हर घर से गंदे पानी के निकासी के लिए नालियां बनी हुई थीं, जो मुख्य नालियों से जुड़ती थीं।
  • ईंटों से बने घर – खुदाई में दो या अधिक कमरों वाले मकान मिले हैं जिनमें आंगन, रसोईघर और स्नानघर जैसी सुविधाएं मौजूद थीं।
  • मूर्तियां और मूर्तिकला – प्रसिद्ध कांस्य निर्मित ‘नर्तकी की मूर्ति’, पशुपति मुहर, टेराकोटा की मूर्तियां और अन्य कलात्मक वस्तुएं मोहनजोदड़ो की कला और संस्कृति की गवाही देती हैं।

मोहनजोदड़ो का महत्व

मोहनजोदड़ो की खुदाई ने यह साबित कर दिया कि लगभग 4500 वर्ष पूर्व भी मानव सभ्यता इतने विकसित स्तर पर थी कि वे नगर योजना, जल प्रबंधन और सामाजिक संगठन जैसी आधुनिक व्यवस्थाओं को अपनाते थे। यहां से प्राप्त मुहरें, वजन प्रणाली और लेखन के प्रमाण यह दर्शाते हैं कि इस सभ्यता का व्यापार और प्रशासन भी व्यवस्थित था।

खुदाई से मिली चुनौतियाँ

मोहनजोदड़ो की खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। स्थल की भौगोलिक स्थिति के कारण सिंधु नदी की बाढ़ और जलभराव की समस्या बार-बार आई। इसके अतिरिक्त, समय के साथ स्थल का क्षरण और प्राकृतिक आपदाओं ने भी अवशेषों को नुकसान पहुँचाया।

वर्तमान स्थिति

आज मोहनजोदड़ो एक विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में संरक्षित है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और मानवीय उपेक्षा के कारण इस स्थल को गंभीर खतरे भी हैं। संरक्षण कार्यों के माध्यम से इस प्राचीन नगर की विरासत को बचाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस महान सभ्यता की गौरवगाथा को जान सकें।

निष्कर्ष

मोहनजोदड़ो की खुदाई न केवल भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनता का प्रमाण है बल्कि यह मानव जाति की प्राचीन बौद्धिकता और सामाजिक संगठन की कहानी भी कहती है। यह स्थल हमें अपने इतिहास से जुड़ने और उससे सीख लेने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

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