नवम्बर 22, 2024

क्या मनीष सिसोदिया अब केजरीवाल का चार्ज संभालेंगे? सुप्रीम कोर्ट के जमानत का फैसला

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सुप्रीम कोर्ट के जमानत फैसले के पीछे की अहम बातें और दिल्ली शराब नीति केस पर इसका असर

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है, जिससे 17 महीने बाद वे जेल से बाहर आ सकेंगे। यह फैसला न केवल सिसोदिया के लिए बल्कि भारतीय न्यायिक प्रणाली और देश के लाखों कैदियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। आइए इस फैसले के आधार, इसके व्यापक प्रभाव, और इस मामले में आगे क्या हो सकता है, इन सब पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

जमानत का आधार: क्यों सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत?

सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत देते समय मुख्य रूप से तीन आधारों को ध्यान में रखा:

  1. ट्रायल में देरी: कोर्ट ने पाया कि CBI और ED अभी तक सिसोदिया के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई हैं। इसके कारण मुकदमे की सुनवाई शुरू ही नहीं हो पाई है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल में देरी के कारण किसी आरोपी को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  2. गवाहों और दस्तावेजों की विशालता: इस मामले में 493 गवाहों और एक लाख से अधिक पेजों के डिजिटल दस्तावेज शामिल हैं। कोर्ट ने माना कि इन परिस्थितियों में मुकदमा जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है।
  3. मौलिक अधिकारों का संरक्षण: कोर्ट ने टिप्पणी की कि जब तक किसी आरोपी का अपराध सिद्ध नहीं होता, उसे लंबे समय तक जेल में रखना अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, सिसोदिया की समाज में गहरी जड़ें हैं, इसलिए उनके फरार होने का कोई खतरा नहीं है।

निचली अदालतों के रुख पर सवाल

इससे पहले, निचली अदालत और हाईकोर्ट ने सिसोदिया की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था। ट्रायल कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को प्रथम दृष्टया साजिशकर्ता मानते हुए उनकी जमानत याचिका खारिज की थी। हाईकोर्ट ने भी सिसोदिया के प्रभावशाली व्यक्ति होने और गवाहों को प्रभावित करने की संभावना को देखते हुए जमानत नहीं दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इन फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि निचली अदालतें जमानत देने के मामलों में ‘सुरक्षित’ खेलने की कोशिश करती हैं। जमानत एक नियम है और जेल अपवाद, इस सिद्धांत का पालन नहीं होने से अदालतों में मुकदमों का अंबार लगा हुआ है।

ED और CBI के तर्क: सिसोदिया के खिलाफ क्या कहा?

जमानत के विरोध में ED और CBI ने सुप्रीम कोर्ट में दो प्रमुख तर्क दिए:

  1. मुकदमे में देरी का आरोप: सरकारी वकील एसवी राजू ने कहा कि मुकदमे में देरी के लिए जांच एजेंसियां नहीं, बल्कि सिसोदिया और उनके वकील जिम्मेदार हैं। उन्होंने अदालतों में एक के बाद एक आवेदन दायर किए, जिससे जांच एजेंसियों का समय बर्बाद हुआ और मुकदमा शुरू नहीं हो सका।
  2. गवाहों पर प्रभाव: दूसरा तर्क यह था कि अगर सिसोदिया को जमानत दी गई, तो वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं और गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।

फैसले का व्यापक असर: लाखों मुकदमों पर पड़ेगा असर?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर सिर्फ मनीष सिसोदिया पर नहीं, बल्कि देशभर में लंबित मामलों में जमानत का इंतजार कर रहे लाखों कैदियों पर भी पड़ेगा। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जल्द न्याय का अधिकार’ को मान्यता दी है। इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि अदालतें जमानत के मामलों में अधिक संवेदनशील और सक्रिय रुख अपनाएंगी।

क्या मनीष सिसोदिया अब केजरीवाल का चार्ज संभालेंगे?

मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद, यह सवाल उठता है कि क्या वे अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का चार्ज संभाल सकते हैं? सिसोदिया और केजरीवाल दोनों को अभी तक सजा नहीं हुई है, इसलिए उनके विधायक होने में कोई अयोग्यता नहीं है। सिसोदिया, जो पहले उपमुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल की भूमिका का निर्वहन कर चुके हैं, अब जेल से बाहर आकर फिर से वही भूमिका निभा सकते हैं।

दिल्ली शराब नीति केस: आगे क्या हो सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, जांच एजेंसियां अब फाइनल और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल कर सकती हैं, जिसके आधार पर आगे की सुनवाई होगी। अगर जांच एजेंसियां सिसोदिया के खिलाफ मजबूत सबूत जुटा पाती हैं, तो वे उनकी कस्टडी दोबारा से मांग सकती हैं। इसके अलावा, अरविंद केजरीवाल समेत अन्य आरोपी भी सिसोदिया के जमानत फैसले को आधार बनाकर अपनी जमानत की मांग कर सकते हैं।

निष्कर्ष: एक नई दिशा की ओर संकेत

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली में जमानत के सिद्धांत को मजबूती से स्थापित करता है। यह फैसला न केवल सिसोदिया के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि भविष्य में लंबित मुकदमों में फंसे हजारों कैदियों के लिए भी एक उम्मीद की किरण बन सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले के बाद दिल्ली शराब नीति केस और अन्य संबंधित मामलों में आगे क्या होता है।

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